Thursday, December 24, 2009

नव वर्ष अभिनंदन

नव वर्ष के अभिनंदन में,
हम-तुम मिल कर वचन करें,
कदम से कदम मिला कर ही,
हम-तुम मिल कर कदम चलें,

न हों बातें तेरी-मेरी,
न हो बंधन जात-धर्म का,
न हो रस्में ऊंच-नीच की,
न हो बंधन सरहदों का,
न हो भेद नर और नारी में,

हो तो बस एक खुला बसेरा,
बिखरी हो फूलों की खुशबू,
रंग-रौशनी छाई हो,

बाहों में बाहें सजती हों,
कंधों संग कंधे चलते हों,
नर और नारी संग बढते हों,
जन्मों में खुशियां खिलती हों,

धर्म बना हो राष्ट्रमान,
कर्म बना हो समभाव,
नव वर्ष का अभिनंदन हो,
धर्म-कर्म का न बंधन हो,

खुशियां-खुशबू, रंग-रौशनी बिखरी हो,
गांव-गांव, शहर-शहर,
हर दिल - हर आंगन में,
नव वर्ष के अभिनंदन में,

मान बढा दें, शान बढा दें
चेहरे-चेहरे पे मुस्कान खिला दें,
हम-तुम मिलकर
वचन करें - कदम चलें,
नव वर्ष के अभिनंदन में ।

Saturday, December 19, 2009

नेकी

नेकी, कौन-सी नेकी

शायद वही तो नहीं, जिसे लोग कहते हैँ

नेकी कर दरिया में डाल !


आज के समय में नेकी, किसके लिये नेकी

शायद उनके लिये

जिन्हें नेकी का मतलब पता नहीं !


या फिर उनके लिये,

जिन्हें ज़रूरत तो है, पर जिनकी नज़रें बदल चुकी हैं !

अब नेकी करने वाले, 'ख़ुदा के बन्दों' को भी

मतलबी समझने लगे हैं लोग !


नेकी, अब छोड़ो भी नेकी

अब वो समय नहीं रहा, जब नेकी करने वालों को

'ख़ुदा का बन्दा' कहा करते थे लोग !


अब ज़रूरत मन्दों की, नज़रें बदल रही हैँ

ज़रूरत तो है,

सामने ख़ुदा का बन्दा भी है, पर क्या करेँ,

हालात ही कुछ ऐसे हैं,

देखने वालों को

ख़ुदा के बन्दे भी, मतलबी दिख रहे हैँ !


अब समय नहीं रहा,

नेकी करने का, दरिया में डालने का

लोग अब -

नेकी करने का मतलब, कुछ और ही समझने लगे हैं !

सामने 'ख़ुदा का बन्दा' तो क्या,

ख़ुद,

'ख़ुदा' भी आ जाये, तब भी ... !!

Monday, December 7, 2009

साहित्यकार ...

सरकार, कितनी अच्छी सरकार
जो दे रही है भत्ता बेरोजगारों को
कर रही है माफ़ ऋण किसानों के
दे रही है पेंशन सांसदों-विधायकों को !

और तो और अब क्रिकेटर भी
पेंशन के हकदार हो गए हैं
इस देश में, लोकतंत्र में !

सरकार हर किसी की भलाई
के लिए जोड़-तोड़ कर रही है
कोई छूट न जाए, ढूँढ -ढूँढ कर
हर किसी के लिए
अच्छे से अच्छा इंतज़ाम कर रही है !

सरकारी अधिकारी - कर्मचारी
चुने हुए पंचायत प्रतिनिधि
आयोगों के सदस्य -अध्यक्ष
सांसद, विधायक, क्रिकेटर, बेरोजगार
हर किसी को नए-नए उपहार मिल रहें हैं !

क्या ये ही देश के कर्णधार हैं !
लोकतंत्र में प्रबल दावेदार हैं !
क्या इनके कन्धों पर ही देश खड़ा है ?

इनके क़दमों से ही देश आगे बढ़ रहा है
क्या ये ही सब कुछ हैं, देश के लिए ?

पथ प्रदर्शक हैं, मार्गदर्शक हैं
समीक्षक हैं,समालोचक हैं
स्तंभकार हैं, प्रेरणास्रोत हैं
शायद ये ही सब कुछ हैं
तो फिर साहित्यकार क्या हैं ?

क्या साहित्यकार कुछ भी नहीं हैं
क्या आज़ादी के आंदोलनों में
इनकी कोई भूमिका नहीं थी ?

क्या ये राष्ट्र-समाज के आइना नहीं हैं
क्या समाज में इनका कोई योगदान नहीं हैं
क्या देश के ये महत्वपूर्ण सिपाही नहीं हैं ?

क्या ये लोकतंत्र के स्थापित प्रतिनिधि नहीं हैं
क्या आन्दोलन-आजादी स्वस्फूर्त मिल गई ?

अगर ये कुछ नहीं हैं
तो इन्हें इनके हाल पर छोड़ दो
बेचने दो इन्हें पदकों और दुशालों को !

खोलने दो इन्हें दुकानें परचूनों की
तड़फने दो इन्हें बंद अँधेरी कोठरियों में
शायद ये इसी के हकदार हैं !

और सांसद, विधायक, पंचायत प्रतिनिधि -
क्रिकेटर, बेरोजगार ही लोकतंत्र के प्रबल कर्णधार हैं
वेतन पेंशन और सुविधाओं के हकदार हैं !

अगर इस लोकतंत्र में
कोई सोचता, जानता, मानता है, कि -
साहित्यकारों ने -
देश की आजादी में कंधे से कन्धा मिलाया था
आज़ादी के सिपाहियों का खून लेखनी से खौलाया था
जनता को आंदोलनों के लिए गरमाया था
देश को मिलजुल कर आज़ाद कराया था !

तो आज़ाद लोकतंत्र में
ये साहित्यकार सुविधाओं के हकदार हैं
दावेदारों में प्रबल दावेदार हैं
ये भूलने वाली बात नहीं -
याद दिलाने वाली सौगात नहीं !

ये साहित्यकार ही हैं
जो समाज को आइना दिखाते हैं
शिक्षा के नए आयाम बनाते हैं !

ये ही रास्ते बनाते हैं
और उन पर चलना सिखाते हैं !

ये साहित्यकार ही हैं
जो धूमिल हो रही आजादी को
फिर से आज़ाद करायेंगे !

लोकतंत्र में, केन्द्रीय-प्रांतीय सरकारों से
राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्रियों से
एक छोटा-सा प्रश्न पूछता हूँ !

क्या इस देश में -
साहित्यकार, बेरोजगारों से भी गए गुज़रे हैं ?

क्या ये अन्य हकदारों की तरह
वेतन-पेंशन, आवास-यात्रा, पास के हकदार नहीं हैं ?

क्या ये मीनार के चमकते कंगूरे -
और नींव के पत्थर नहीं हैं ?

हाँ, अब समय आ गया है
शहीदों के सम्मान के साथ
स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान के साथ
सीनियर सिटीज़नों के सम्मान के साथ
साहित्यकारों को भी सम्मानित करने का !

मान, प्रतिष्ठा एवं सुविधाएँ देने का
लोकतंत्र में, लोकतंत्र के लिए ...!!

Wednesday, November 25, 2009

नक्सली समस्या ?

नक्सली, कौन है नक्सली, नक्सली समस्या आखिर क्या है ?
कौन है इसके जन्मदाता, और कौन चाहते है इसकी रोकथाम ?
रोकथाम और उन्मूलन के लिए कौन दम भर रहा है ?
क्या मात्र दम भरने से उन्मूलन हो जायगा
या बरसों से दम भर रहे लोगो के साथ,
कुछेको का नाम और जुड़ जायगा !!

नक्सली उन्मूलन के लिए उठाए गए कदम -
क्या कारगर नहीं थे ?
कारगर थे तो फिर उन्मूलन क्यों न हुआ,
क्यों कदम उठ -उठ कर लड़खडा गए ?
दम भरने वाले कमजोर थे, या उठाए गये कदम,
या फिर हौसला ही कमजोर था ?
समय-समय पर नए-नए उपाय, और फिर वही ठंडा बस्ता !!

आखिर उपायों के कब तक ठंडे बसते बनते रहेंगे ?
कब तक माथे पर चिंता की लकीरें पड़ती रहेंगी ?
कब तक नक्सलियों के हौसले बड़ते रहेंगे ?
कब तक भोले भाले लालसलाम कहते रहेंगे ?
लालसलाम -लालसलाम के नारे कब तक गूंजते रहेंगे ?

एयर कंडीशन कमरों-गाड़ियों में बैठने वाले ...
एयरकंडीशन उड़न खटोलो में उड़ने वाले ...
क्या नक्सली समस्या का समाधान खोज पाएंगे ?
क्या लाल सलाम को बाय-बाय कह पाएंगे ?

एयरकंडीशन में रचते बसते लोग -
तपती धरती की समस्या को समझ पाएंगे ?
सीधी- सादी सड़कों पर दौड़ते लोग -
उबड-खाबड़ पगडंडियों पर चलने के रास्ते बना पाएंगे ?

सरसराहट से सहम जाने वाले लोग -
क्या नक्सली खौफ को मिटा पाएंगे ?
या फिर -
नक्सली उन्मूलन का दम ... !!

क्या हम नक्सली समस्या समझ गए है !
क्या हम इसके समाधानों तक पहुँच गए है !
क्या हम सही उपाय कर पा रहे है !
शायद नहीं ....................... आख़िर क्यों ?

क्योकि तपती धरती, ऊबड-खाबड़ पगडंडियों -
में रचने बसने वालों के सुझाव कहाँ है ?
कौन सुन-समझ रहा है उनकी
कौन आगे है -कौन पीछे है ?
एयर कंडीशन ... तपती धरती ... और नक्सली समस्या ?

साथ ही साथ यह प्रशन उठता है -
की नक्सली चाहते क्या है ?
क्या वे लक्ष्य के अनुरूप काम कर रहे हैं ?
या फिर -
सिर्फ ... मार-काट ... लूटपाट ... बारुदी सुरंगें ...
ही नक्सलियों का मकसद है ??

Friday, November 20, 2009

बोल अनमोल

" जो रीति-नीति इंसानों के बीच में लकीरें खींच दे वह अनुशरण के योग्य नही हो सकती।"
....................................................
" आधुनिकता कट्टरपंथ को समाप्त कर देगी और कट्टरपंथी देखते रह जायेंगे।"
....................................................
" भूख, नींद, सेक्स, जन्म, म्रत्यु का कोई धर्म नहीं है।"
....................................................
" उधार ले कर किसी अन्य को उधार मत दो।"
....................................................
"कर्ज लेकर किसी जोखिम वाले व्यवसाय में निवेश करना भलमनसाहत का कार्य नही है।"
....................................................
"बूंद-बूंद से घडा भर सकता है लेकिन नदियां व झरने ही समुन्दर बना सकते हैं।"

Friday, November 13, 2009

शेर

नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
....................................
हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला।
....................................
मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
....................................
हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना।

Friday, October 23, 2009

शेर

कभी इस पार, कभी उस पार
बता आख़िर ... ... ...
...................................................
कहीं भी आग दिखती नहीं यारा
न जाने ये धुंआ उट्ठा कहाँ से है
................................................
किसे अपना कहें , किसे बेगाना
सफर में तो सभी, हमसफ़र हैं 'उदय'
...............................................
तेरा पतलून की जेबों को खामों-खां टटोलना अच्छा लगा
पैसे क्यों दे दिए 'जनाब', बाद में ये पूंछ लेना भी अच्छा लगा
..................................................
मोहब्बत में जीने-मरने की क़समें खाते हैं सभी
पर दस्तूर है ऐसा , कोई जी नहीं - तो कोई मर नहीं पाता

Friday, October 16, 2009

दीपावली अभिनन्दन ...

"आओ मिल कर फूल खिलाएं, रंग सजाएं आँगन में
दीवाली के पावन में , एक दीप जलाएं आंगन में "
...
"सूना न हो अब कोई दिल, और न हो अब खामोशी
'उदय' तू भी बन जा 'दीप' मेरे संग , जग में कर दें रौशनी "

Wednesday, September 16, 2009

शेर

न कर गुमान ख़ुद पे, वक्त ने दिया साथ तो निकल आए हो
छोडेगा जब साथ तो बिखर जाओगे
...............................................................
तंग हालत में भी, शान न टूटने पाये
'उदय' कुछ राहें , ऐसी दिखाते रहना
..............................................................
ये सच है, बहुत उलझा हुआ हूँ
पर सुकून है, तेरे साथ होने से
..............................................................
हम कडकेन्गे जब आसमान में बिजली बनकर
अंधेरों में कहीं तो रौशनी होगी
..............................................................
है मुमकिन करो कोशिश , तुम मुझको भूल जाने की
पर नामुमकिन ही लगता है, भुला पाना मुझे यारा

Tuesday, September 1, 2009

शेर

अंधेरे उजालों से कहीं बेहतर हैं

वहाँ हैं तो सभी, पर दिखते नहीं हैं

.............................................

भीड़ में चैन नहीं मिलता

सुकून की चाह में तनहा हूँ

...........................................

क्यों खो रहे हो रातों का सुकून

हाय-तौबा जिंदगी भर अच्छी नहीं यारा

...............................................

'उदय' कहता है , जख्मों को छिपा कर रखना यारो

जो भी देखेगा, कुरेद ... ... ...

.....................................................

चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए

तुम झुकते नहीं, और ... ... ...

Monday, August 3, 2009

बोल-अनमोल

* 40 *
“मैं एक सिद्धांत पर कार्य करता हूँ कि क्या सकारात्मक है और क्या सकारात्मक हो सकता है।”
* 39 *
“आँगन में ऎसे पौधे न लगाएं जिसमे काँटे हों, फूल हों तो ठीक है न हों तो भी ठीक है।”
* 38 *
“लालच व बेइमानी अदभुत शक्तियाँ हैं जो मनुष्य को अपना गुलाम बना लेती हैं।”
* 37 *
“सपने देखना जितना महत्वपूर्ण है उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण सपनों को साकार करने हेतु उठाए गये कदम हैं।”
* 36 *
“मेरी कार्य योजनाएँ कितनी सकारात्मक व उपयोगी हैं यह देखना भी मेरा दायित्व है।”
* 35 *
“भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति हर क्षण भ्रष्टाचार के नये-नये उपाय ढूँढते रहता है उसके पास परिवार व समाज हित के लिये वक्त ही नही होता।”
* 34 *
“सफलताएँ उनके कदमों को चूमतीं हैं जो सफलताओं की ओर कदम बढाते हैं”

Monday, July 27, 2009

शेर - 100

शेर - 100
सुकूं से बैठकर, क्या गुल खिला लेंगे
चलो दो-चार हाँथ आजमा लें हम ।
शेर - 99
अगर है तो, बहुत कुछ है
नहीं तो, कुछ नहीं यारा ।
शेर - 98
अब नहीं लिखता किताबें, तेरे इरादे भाँप कर
है कहाँ फुर्सत तुझे, पुस्तक उठा के देख ले ।
शेर - 97
अब भी क्यों रोते हो मुफलिसी का रोना
हम जानते हैं, दौलतें चैन से तुम्हें सोने नहीं देतीं।
शेर - 96
चलो आए, किसी के काम तो आए
किसी दिन फिर, किसी के काम आएंगे ।
शेर - 95
फूल समझ हमने, उन्हें छुआ तक नहीं
वे काँटे समझ हमको, सहम कर गुजर गये।
शेर - 94
चलो उमड जाएँ, बादलों की तरह
सूखी है जमीं, कहीं तो बारिस होगी ।
शेर - 93
‘रब’ भी मेरी खताएँ माफ कर देता
गर मैने झुककर सजदा किया होता।
शेर - 92
मेरी रातें भी दिन जैसी ही हैं
फर्क है तो , तनिक अंधेरा है ।

Monday, July 20, 2009

शेर - 91

शेर - 91
कैसे बना दूँ गैर तुझे, एक शुक्रिया अदा कर
तेरा ही शुक्रिया है, हमें जीना सिखा दिया।
शेर - 90
तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
शेर - 89
‘उदय’ तेरी ही दोस्ती है, जो हमें जिंदा रखे है
मरने को, तो हम, कब के मर चुके हैं ।
शेर - 88
वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
शेर - 87
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।

Monday, July 13, 2009

शेर - 86

शेर - 86
कभी राहें नहीं मिलतीं, कभी मंजिल नहीं मिलती
ये जिंदगी के सफर हैं, कभी हमसफर नहीं मिलते ।
शेर - 85
तुम्हे हम चाहते हैं, न जाने क्यों ये चाहत है
पर हमको है खबर, मिटटी पे पानी की इबारत है।
शेर - 84
जब चंद लम्हों में, मिट जाए सदियों की थकान
फिर रात के ठहरने का, इंतजार किसको है।

Monday, July 6, 2009

शेर - 83

शेर - 83
मोहब्बतें हैं या रंजिशें हैं, कोई समझाये हमें
जब भी उठती है नजर, अंदाज कातिलाना है ।
शेर - 82
जमीं से आसमां तक, नजारे-ही-नजारे हैं
तुम देखो तो क्या देखो, हम देखें तो क्या देखें।
शेर - 81
मंजिलें हैं जुदा-जुदा, तो क्या हुआ
कम-से-कम ‘दुआ-सलाम’ तो करते चलो ।
शेर - 80
मिले हैं राह में, सुकूं से देख लो हमको
‘उदय’ जाने, कहाँ लिक्खीं हैं फिर मुलाकातें।
शेर - 79
अब फिजाएं भी कह रही हैं उड निकल
क्यूँ खडा खामोश है, तू जमीं को देखकर।

Monday, June 29, 2009

शेर - 78

शेर - 78
कहां अपनी, कहां गैरों की बस्ती है
जहां देखो, वहीं पे बम धमाके हैं।
शेर - 77
लिखते-लिखते क्या लिखा, क्या से क्या मैं हो गया
पहले जमीं , फिर आसमाँ, अब सारे जहां का हो गया।
शेर - 76
सजा-ए-मौत दे दे, या दे दे जिंदगी
चाहे अब न ही कह दे, मगर कुछ कह तो दे।

Monday, June 22, 2009

जमीं पे, गम के साये में, खुशी हम चाहते हैं।

.....
बसा लो तुम हमें, अपने गिरेबां में
दिलों में अब, है आलम बेवफाई का।
.....
वो मिले, मिलते रहे तन्हाई में
भीड में, फिर वो जरा घबरा गये।
.....
आज दुआएँ भी हमारी, सुन लेगा ‘खुदा’
जमीं पे, गम के साये में, खुशी हम चाहते हैं।
.....
तुमने हमारी दोस्ती का, क्यूं इम्तिहां लिया
तुम इम्तिहां लेते रहे, और दूरियाँ बढती रहीं।
.....
मिट्टी के खिलौनों की दुकां, मैं अब कहां ढूंढू
बच्चों के जहन में भी, तमंच्चे-ही-तमंच्चे हैं।

Monday, June 15, 2009

बोल-अनमोल

* 33 *
“जो लोग मेरे समर्थक व अनुयायी हैं वे हमेशा मेरी प्रसंशा करेंगे, किंतु मुझे उन लोगों की आवश्यता है जो मुझे यह बोध करायें कि मुझसे कहाँ चूक हो रही है।”
* 32 *
“हमारी अच्छी सोच की सार्थकता तब है जब हम उसे कार्यरूप में परिणित करें।”
* 31 *
“स्त्री-पुरुष की संरचना व उत्पत्ति नवीन सृजन के दृष्टिकोण से की गई है इसलिये ही वे एक-दूसरे के पूरक हैं।”
* 30 *
“सच्चाई छिपाकर झूठी शान के लिये दिखावे का जीवन जीना झूठी महत्वाकाँक्षा है जो एक दिन मनुष्य को आत्मग्लानी के सागर में डुबोकर जीना दुस्वार कर देती है।”
* 29 *
“पद की मर्यादा के अनुरुप कार्य न करना, व्यवस्था को बिगाडना है।”
* 28 *
“भाग्य के भरोसे बैठना उचित नहीं है, कर्म भी भाग्य को सुनहरा बनाते हैं।”

Monday, June 8, 2009

शेर - 70

शेर - 70
मेरे अंदर ही बैठा था ‘खुदा’, मदारी बनकर
दिखा रहा था करतब, मुझे बंदर बनाकर।
शेर - 69
कब तलक तुमको अंधेरे रास आयेंगे
झाँक लो बाहर, उजाले-ही-उजाले हैं ।
शेर - 68
छोड के वो मैकदा, तन्हा फिर हो गया
हम दोस्त नहीं , तो दुश्मन भी नहीं थे।
शेर - 67
हम भी करेंगे जिद, अमन के लिये
देखते हैं, तुम कितने कदम साथ चलते हो।
शेर - 66
दिखाते हो वहाँ क्यूँ दम, जहाँ पे बम नही फटते
बच्चों के खिलौने तोडकर, क्यूँ मुस्कुराते हो।

Wednesday, June 3, 2009

शेर

शेर - 65
‘मसीहे’ की तलाश में दर-दर भटकते फिरे
‘मसीहा’ जब मिला, तो अपने अन्दर ही मिला।

शेर - 64
हो शाम ऎसी कि तन्हाई न हो
मिले जब मोहब्बत तो रुसवाई न हो।

शेर - 63
प्यार हो, तो दूरियाँ अच्छी नहीं
दुश्मनी हो, तो फिर दोस्ती अच्छी नहीं।
शेर - 62
सत्य के पथ पर, अब कोई राही नहीं है
गाँधी के वतन में, अब कोई गाँधी नहीं है ।
शेर - 61
मेरी महफिल में तुम आये, आदाब करता हूँ
कटे ये शाम जन्नत सी, यही फरियाद करता हूँ ।

Monday, June 1, 2009

शेर

शेर - 60
तेरी खामोशियों का, क्या मतलब समझें
तुझे उम्मीद है, या इंतजार है ।
शेर - 59
वक्त गुजरे, तो गुजर जाये
तेरे आने तक, इंतजार रहेगा हमको ।
शेर - 58
आसमां तक रोशनी चाहते क्यों हो
घरों के अंधेरे तो दूर हों पहले ।

Sunday, May 31, 2009

बोल-अनमोल

* 27 *
“मुझे उस पल का इंतजार है जब मैं स्वयं पर गर्व कर सकूं।”
* 26 *
“जब तक तुम्हे, किसी ने पागल नही समझा, तुम कैसे सोच सकते हो कि मंजिल की ओर सही रास्ते पर हो।”
* 25 *
“मुझे विरासत में क्या मिला, शायद कुछ नहीं, पर मैं अपने बच्चों को विरासत में कुछ देना चाहता हूँ, पर क्या?”

Saturday, May 30, 2009

बोल-अनमोल

* 24*
"प्रतिदिन एक ऎसा कार्य अवश्य करें जिसके परिणाम स्वरूप आत्मसंतुष्टि प्राप्त हो।"
* 23 *
"कल्पनाएँ सदैव ही रोचक व मनभावन होती हैं।"
* 22 *

"अज्ञानतावश हुई भूल का सुधार अविलंब करें।"
* 21 *

"जिनके पास विकल्प नहीं हैं उन्हे निराश नही होना चाहिये।"
* 20 *
"प्रत्येक मनुष्य स्वयं को महान मानता है किंतु वह व्यवहार मे महानता से परे होता है।"

Wednesday, May 27, 2009

शेर

शेर - 57
खुदा की सूरतें हैं क्या, खुदा की मूरतें हैं क्या
न तुम जाने, न हम जाने ।
शेर - 56
अंधेरे जिन्हे रास नही आते
उनकी राहों मे रौशनी खुद-व-खुद आ जाती है।
शेर - 55
चलो लिख दें इबारत कुछ इस तरह
जिसे पढकर रस्ते बदल जाएँ।

Tuesday, May 26, 2009

शेर - 54

शेर - 54
वो भी तन्हा रह गए, हम भी तन्हा रह गए
उनकी खामोशियाँ, भी सिसकती रह गईं।
शेर - 53
फक्र कर पहले जमीं पर
फिर करेंगे आसमां पर।
शेर - 52
होते हैं हालात, मौत से बदतर
जो जीते-जी मौत दिखा देते हैं।

Monday, May 25, 2009

शेर - 51

शेर - 51
हम जो लिख दें, तो समझ लो क्या लिखा है
तुम जो पढ लो, तो समझ लो क्या लिखा है।
शेर - 50
दौलतें बाँधकर पीठ पर ले जायेंगे
जमीं पे गददारी के निशां छोड जायेंगे।
शेर - 49
क्यूँ रोज उलझते-सुलझते हो मोहब्बत में
क्या हँसते-मुस्कुराते जीना खुशगवार नहीं ।

Sunday, May 24, 2009

शेर

शेर - 48
तौबा कर लेते मोहब्बत से
गर तेरे इरादे भाँप जाते हम।
शेर - 47
चमचागिरी का दौर बेमिसाल है
चमचों-के-चमचे भी मालामाल हैं।

Saturday, May 23, 2009

शेर - 46

रोज सपनों मे तुम यूँ ही चले आते हो
कहीं ऎसा तो नहीं, सामने आने से शर्माते हो।

Friday, May 22, 2009

शेर - 45

कदम-दर-कदम रास्ते घटते गए और फासले बढते गये
फिर हौसले बढते गये और मंजिलें बढती गईं ।

Thursday, May 21, 2009

शेर - 44

‘खुदा’ तो है ‘खुदा’ तब तक, जब तक हम ‘खुदा’ मानें
कहाँ है फिर ‘खुदा’, जब न ‘खुदा’ मानें

Wednesday, May 20, 2009

शेर - 43

‘उदय’ जाने, अब हमारी चाहतें हैं क्या
अब तक जिसे चाहा, वही बेजुवाँ निकला।

Tuesday, May 19, 2009

शेर - 42

हमें परवाह नही कि सितारे आसमां मे हों
हम तो देखते हैं आसमां ,सुकूं के लिये ।

Monday, May 18, 2009

शेर - 41

हमारी दोस्ती, ‘खुदा’ बन जाए है इच्छा
अब खुशबू अमन की, ‘खुदा’ ही बाँट सकता है ।

Sunday, May 17, 2009

शेर - 40

तेरी मासुमीयत की दास्तां, कितनी सुहानी है
दिलों के कत्ल कर के भी, बडे बेखौफ बैठे हो ।

Saturday, May 16, 2009

शेर - 39

दुश्मनी का अब, वक्त नही है
अमन के रास्ते मे, काँटे बहुत हैं।

Friday, May 15, 2009

बोल-अनमोल

“समय व पैसे का सदुपयोग ही भविष्य को सुनहरा बनाता है।”

Thursday, May 14, 2009

बोल-अनमोल

“लेखन एक कला है, शब्दों की रचना, लेख, कहानी, कविता, गजल, शेर-शायरी नवीन अभिव्यक्तियाँ होती हैं, अभिव्यक्तियों के भाव-विचार सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं किंतु इन अभिव्यक्तियों के आधार पर लेखक की मन: स्थिति का आँकलन करना निरर्थक है।”

Wednesday, May 13, 2009

शेर - 38

अभी भी वक्त है यारा, पलट के देख ले हमको
खुदा जाने, फिर कभी मौका न आयेगा ।

Tuesday, May 12, 2009

शेर - 37

कभी तुम रोज मिलते हो, कभी मिलते नहीं यारा
तुम्हारी ये अदाएँ भी, क्या कातिल अदाएँ हैं।

Monday, May 11, 2009

शेर - 36

छोड दूँ मैं मैकदा, क्यों सोचते हो
कौन है बाहर खडा, जो थाम लेगा।

Sunday, May 10, 2009

शेर - 35

क्यूँ खफा हो, अब वफा की आस में
हम बावफा से, बेवफा अब हो गये हैं।

मदर्स डे

“माँ के आशिर्वाद में नाम, यश, कीर्ति, सुख, समृद्धि , धन, बैभव, सम्पदा समाहित है।”

Saturday, May 9, 2009

बोल-अनमोल

“ परिवर्तन के लिये सिर्फ हमारी अच्छी सोच पर्याप्त नहीं है, परिवर्तन तो व्यवहारिक कार्यों से ही संभव है।”

Friday, May 8, 2009

बोल-अनमोल

“भ्रष्टाचार पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक हो गया है यदि अब भी भ्रष्टाचार पर अंकुश का प्रयास नहीं किया गया तो भ्रष्टाचार दीमक की भाँति सम्पूर्ण व्यवस्था को खोखला कर देगा और सभी इसकी चपेट में आकर असहाय हो जायेंगे।”

Thursday, May 7, 2009

शेर - 34

तू तन्हा क्यों समझता है खुद को ‘उदय’
हम जानते हैं कारवाँ तेरे साथ चलता है।

Wednesday, May 6, 2009

शेर - 33

रोज आते हो, चले जाते हो मुझको देखकर
क्या तमन्ना है जहन में, क्यूँ बयां करते नहीं।

Tuesday, May 5, 2009

शेर - 32

तुम्हे फुर्सत-ही-फुर्सत है, ‘आदाब-ए-मोहब्बत’ की
हमें फुर्सत नहीं यारा, ‘सलाम-ए-मोहब्बत’ की ।

Sunday, May 3, 2009

बोल-अनमोल

“भ्रष्टाचार से अर्जित सम्पत्ति परिजनों को पथभ्रष्ट कर देती है तथा परिवार विखण्डित होने लगता है, यह स्थिति भ्रष्टाचारी स्वयं आँखों से देखता है।”

शेर - 31

कभी हम चाहते कुछ हैं, हो कुछ और जाता है
जतन की भूख है ऎसी, अमन को भूल जाते हैं ।

Friday, May 1, 2009

शेर - 30

हम जानते हैं तुम, मर कर न मर सके
हम जीते तो हैं, पर जिंदा नही हैं।

Thursday, April 30, 2009

बोल-अनमोल

“ भ्रष्टाचार मुक्त समाज की कल्पना करना आश्चर्य है किंतु आश्चर्य असंभव नही होते।”

Wednesday, April 29, 2009

शेर - 29

पीछे पलट के देखने की फुर्सत कहाँ हमें
कदम-दर-कदम हैं मंजिलें बडी ।

Tuesday, April 28, 2009

बोल-अनमोल

“ भोग व योग दोनों का प्रतिफल संतुष्टि प्रदायक है किंतु भोग का प्रतिफल क्षणिक व व्यक्तिगत है और योग का प्रतिफल विस्तृत व सामाजिक है।”

Sunday, April 26, 2009

जूता फेंको आंदोलन - 2

. . . . . आंदोलन का उद्देश्य क्या है ?
महाराष्ट्र के नन्दूरवार में कांग्रेस प्रत्याशी माणिकराव गावित के पक्ष मे प्रचार कर रहे सिने अभिनेता जीतेन्द्र पर जूता(चप्पल) क्यों फेंका गया ?
भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर अहमदाबाद मे सभा के दौरान इंजीनियरिंग छात्र हितेश चौहान के द्वारा जूता क्यों फेंका गया ?
भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी पर अहमदाबाद क्षेत्र मे भगवा कपडे पहने साधू - धर्मदास बापू के द्वारा जूता(चप्पल) क्यों फेंकी गई ?
क्या राजनैतिक हस्तियाँ जूतों से बचने हेतु सुरक्षागत उपाय करेंगी ?
क्या राजनैतिक हस्तियों के आचरण, व्यवहार में बदलाव की आवश्यकता है ?
जूता फेंको आंदोलन . . . . . . . . . . . . ?

Saturday, April 25, 2009

बोल-अनमोल

“बेईमानी सरल है दूसरों के साथ करना है किंतु ईमानदारी कठिन है स्वयं के साथ करना है।”

Tuesday, April 21, 2009

शेर - 28

पैसा बडा है, ईमान बदल दे
पर इतना भी नहीं, कि कुदरत को बदल दे।

Saturday, April 18, 2009

जूता फेंको आंदोलन - 1

जूता फेंको आंदोलन का उद्देश्य क्या है ?
जूता फेंको आंदोलन के उद्देश्य में क्या सफलता मिल पायेगी ?
अमरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश पर जूता क्यों फेंका गया ?
भारत के गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर जूता क्यों फेंका गया ?
हरियाणा के कांग्रेसी नेता नवीन जिंदल पर जूता क्यों फेंका गया ?
भाजपा नेता लालकृष्ण अडवाणी पर जूता(खडाउ चप्पल) क्यों फेंकी गई ?
असम के कांग्रेसी सांसद अनवर हुसैन पर कनबरी गाँव मे जूते क्यों फेंके गये ?
राजनैतिक हस्तियों पर ही जूते क्यों फेंके जा रहे हैं ?
जूता फेंको आंदोलन . . . . . . . . . . . . ?

Monday, April 13, 2009

शेर - 27

नही है खौफ बस्ती में, तेरी खुबसूरती का
खौफ है तो, तेरी कातिल अदाएँ हैं ।

Friday, April 10, 2009

शेर - 26

बडा मुश्किल है जीना, यारों के चलन में
यारों से, रकीबों के रिवाज अच्छे हैं ।

Wednesday, April 8, 2009

टिप्पणी

"... धर्म-कर्म को छोड गया हूँ

जात-पात को भूल गया हूँ

प्याला हाथ में उठा लिया हूँ

सब से हाथ मिला लिया हूँ

गोरे-काले की बात नही है

ऊँच-नीच का भेद नही है

जाम-से-जाम लडा रहा हूँ

पी-पी कर अब झूम रहा हूँ ...।"

ये पंक्तियाँ आदरणीय महावीर जी के ब्लाग पर टिप्पणी स्वरूप प्रकाशित की गई हैं कभी फुर्सत मे पूर्ण कर प्रकाशित करने का प्रयास होगा।

Sunday, April 5, 2009

खामोशी ...

मेरी तन्हाई में आकर
तुम अक्सर मुझसे बातें करती हो
सामने रहकर
खामोश बनकर मुझसे बातें करती हो !

तुम चाह कर भी
जुबाँ से कुछ कहती नहीं
विदा होने पर
मिलने का वादा करती नहीं
क्या समझें हम तुम्हें
कि तुम चाहती हो
पर चाहत का इकरार करती नहीं !

सुना है लोग कहते हैं
कि जब तुम उनसे मिलती हो
तो सिर्फ मेरी ही बातें करती हो
पर जब मेरे पास होती हो
तब क्यों खामोश रहती हो !

ऎसा लगता है
कि तुम हर पल अपने आप से
सिर्फ मेरी ही बातें करती हो
पर जब मेरे पास होती हो
तब क्यों खामोश रहती हो !

अब क्या कहें अपने ‘दिल’ से
जब वो हमसे पूछता है
कि ‘उदय’ तेरी आशिकी
पत्थर दिल क्यों है!
अब क्या कहूँ
जब तुने मुझसे कुछ कहा नही !!

Saturday, April 4, 2009

बोल-अनमोल

“दृढ इच्छाशक्ति व मजबूत इरादों वाले जुनूनी व्यक्ति के लिये इस दुनिया में कुछ भी असंभव नही है।”

Thursday, April 2, 2009

बोल-अनमोल

“माँ के निर्देशों पर जो बच्चे चलते हैं उनके लिये माँ का आशिर्वाद व दुआएँ अजर-अमर हैं।”

Friday, March 27, 2009

शेर - 25

कौन कहता है हिन्दू-मुस्लिम में फर्क है
नहीं है फर्क जन्मों में - नहीं है फर्क रक्तों में
फर्क है तो तेरी आँखों - तेरी बातों में फर्क है
न हिन्दू भी अलग है, न मुस्लिम भी अलग है।

Monday, March 23, 2009

बोल-अनमोल

“जिस दिन आप एक अनुचित व अनावश्यक कार्य पर नियंत्रण करोगे उसी दिन आपको एक श्रेष्ठ व सारगर्भित मार्ग दिखाई देगा।”

Saturday, March 21, 2009

शेर - 24

मिटटी के खिलौने हैं हम सब, मिटटी में ही रचते-बसते हैं
जिस दिन टूट-के बिखरेंगे, मिटटी में ही मिल जायेंगे ।

Wednesday, March 18, 2009

शेर - 23

फूलों में जबां तुम हो, खुशबू पे फिदा हम हैं
अकेले तुम तो क्या तुम हो, अकेले हम तो क्या हम हैं।

Tuesday, March 17, 2009

बोल-अनमोल

“स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं आपस में कोई छोटा-बडा नही है किसी एक के बिना समाज की कल्पना निरर्थक है।”

Monday, March 16, 2009

शेर - 22

इस तरह मुँह फेर कर जाना तेरा
देखना एक दिन तुझे तडफायेगा ।

Sunday, March 15, 2009

शेर - 21

वो बन गये थे रहनुमा, मुफ्त में खिलौने बाँटकर
खिलौने जान ले-लेंगें, ये सोचा नहीं था ।

Saturday, March 14, 2009

शेर - 20

ताउम्र समेटते रहे दौलती पत्थर
मौत आई तो मिटटी ही काम आई ।

Friday, March 13, 2009

शेर - 19

ये सच है तूने आँखों में समुन्दर को बसा रख्खा है
कितना गहरा है ये तो डूबकर ही बता पायेंगे ।

Monday, March 9, 2009

शेर - 18

रंगों से - गुलालों से, आँखों से - ख्यालों से
मिटा दो सदियों की रंजिस, गले लगकर होली से ।

शेर - 17

कुछ इस तरह अंदाजे बयाँ है तेरा
जिधर देखूँ बस तू ही तू आता है नजर।

Sunday, March 8, 2009

बोल-अनमोल

“यह आवश्यक नहीं कि वह व्यक्ति ही महान है जो समाज में चर्चित है।”

Saturday, March 7, 2009

शेर - 16

फूल कश्ती बन गये, आज तो मझधार में
जान मेरी बच गई, माँ तेरी दुआओं से।

Thursday, March 5, 2009

शेर - 15

अगर हम चाहते तो, बन परिंदे आसमाँ में उड गये होते
जमीं की सौंधी खुशबू और तेरी चाहतों ने, हमें उडने नहीं दिया।

Tuesday, March 3, 2009

शेर - 14

खंदराओं में भटकने से , खुली जमीं का आसमाँ बेहतर
वहाँ होता सुकूं तो, हम भी आतंकी बन गये होते।

Monday, March 2, 2009

बोल-अनमोल

“जब तुम स्वयं को जीत जाओगे, तब इस दुनिया को जीतने लायक बनोगे।”

Sunday, March 1, 2009

शेर - 13

क्यों शर्म से उठती नहीं, पलकें तुम्हारी राह पर
फिर क्यों राह तकते हो, गुजर जाने के बाद।

Wednesday, February 25, 2009

शेर - 12

कौन जाने, कब तलक, वो भटकता ही फिरे
आओ उसे हम ही बता दें ‘रास्ता-ए-मंजिलें’ ।

Tuesday, February 24, 2009

शेर - 11

कहाँ से चले थे, कहाँ आ गये हम
हमें न मिले वो, जो कश्में भुला गये ।

Wednesday, February 18, 2009

शेर - 10

‘उदय’ से लगाई थी आरजू हमने
अब क्या करें वो भी हमारे इंतजार मे थे।

Sunday, February 15, 2009

बोल-अनमोल

“मनुष्य स्वतंत्र नही है क्योंकि वह हर क्षण नैसर्गिक कर्तव्यों व उत्तरदायित्वों के बंधन में जकडा हुआ है।”

Saturday, February 7, 2009

शेर - 9

चाहें तो सारी दुनिया भुला सकते हैं
न चाहें तो कैसे भुलाएँ हम तुम्हे।

Tuesday, January 20, 2009

शेर - 8

वतन की खस्ताहाली से मतलब नहीं उनको
वतन के शिल्पी होकर जो गददार बन बैठे।

Sunday, January 18, 2009

शेर

झौंके बन चुके हैं हम हवाओं के

तेरी आँखों को अब हमारा इंतजार क्यों है।

Monday, January 12, 2009

बोल-अनमोल

" रंग, रूप, आकार, जाति, धर्म, सम्प्रदाय मनुष्य की पहचान बन सकते हैं किंतु ये मनुष्य को महान नहीं बना सकते। "

Friday, January 9, 2009

शेर 6

‘उदय’ तेरी नजर को, नजर से बचाए,
जब-भी उठे नजर, तो मेरी नजर से आ मिले।
(नजर = आँखें , नजर = बुरी नजर/बुराई)

Monday, January 5, 2009

शेर - 5

उदय’ तेरी आशिकी, बडी अजीब है
जिससे भी तू मिला, उसे तन्हा ही कर गया।