Wednesday, November 25, 2009

नक्सली समस्या ?

नक्सली, कौन है नक्सली, नक्सली समस्या आखिर क्या है ?
कौन है इसके जन्मदाता, और कौन चाहते है इसकी रोकथाम ?
रोकथाम और उन्मूलन के लिए कौन दम भर रहा है ?
क्या मात्र दम भरने से उन्मूलन हो जायगा
या बरसों से दम भर रहे लोगो के साथ,
कुछेको का नाम और जुड़ जायगा !!

नक्सली उन्मूलन के लिए उठाए गए कदम -
क्या कारगर नहीं थे ?
कारगर थे तो फिर उन्मूलन क्यों न हुआ,
क्यों कदम उठ -उठ कर लड़खडा गए ?
दम भरने वाले कमजोर थे, या उठाए गये कदम,
या फिर हौसला ही कमजोर था ?
समय-समय पर नए-नए उपाय, और फिर वही ठंडा बस्ता !!

आखिर उपायों के कब तक ठंडे बसते बनते रहेंगे ?
कब तक माथे पर चिंता की लकीरें पड़ती रहेंगी ?
कब तक नक्सलियों के हौसले बड़ते रहेंगे ?
कब तक भोले भाले लालसलाम कहते रहेंगे ?
लालसलाम -लालसलाम के नारे कब तक गूंजते रहेंगे ?

एयर कंडीशन कमरों-गाड़ियों में बैठने वाले ...
एयरकंडीशन उड़न खटोलो में उड़ने वाले ...
क्या नक्सली समस्या का समाधान खोज पाएंगे ?
क्या लाल सलाम को बाय-बाय कह पाएंगे ?

एयरकंडीशन में रचते बसते लोग -
तपती धरती की समस्या को समझ पाएंगे ?
सीधी- सादी सड़कों पर दौड़ते लोग -
उबड-खाबड़ पगडंडियों पर चलने के रास्ते बना पाएंगे ?

सरसराहट से सहम जाने वाले लोग -
क्या नक्सली खौफ को मिटा पाएंगे ?
या फिर -
नक्सली उन्मूलन का दम ... !!

क्या हम नक्सली समस्या समझ गए है !
क्या हम इसके समाधानों तक पहुँच गए है !
क्या हम सही उपाय कर पा रहे है !
शायद नहीं ....................... आख़िर क्यों ?

क्योकि तपती धरती, ऊबड-खाबड़ पगडंडियों -
में रचने बसने वालों के सुझाव कहाँ है ?
कौन सुन-समझ रहा है उनकी
कौन आगे है -कौन पीछे है ?
एयर कंडीशन ... तपती धरती ... और नक्सली समस्या ?

साथ ही साथ यह प्रशन उठता है -
की नक्सली चाहते क्या है ?
क्या वे लक्ष्य के अनुरूप काम कर रहे हैं ?
या फिर -
सिर्फ ... मार-काट ... लूटपाट ... बारुदी सुरंगें ...
ही नक्सलियों का मकसद है ??

Friday, November 20, 2009

बोल अनमोल

" जो रीति-नीति इंसानों के बीच में लकीरें खींच दे वह अनुशरण के योग्य नही हो सकती।"
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" आधुनिकता कट्टरपंथ को समाप्त कर देगी और कट्टरपंथी देखते रह जायेंगे।"
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" भूख, नींद, सेक्स, जन्म, म्रत्यु का कोई धर्म नहीं है।"
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" उधार ले कर किसी अन्य को उधार मत दो।"
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"कर्ज लेकर किसी जोखिम वाले व्यवसाय में निवेश करना भलमनसाहत का कार्य नही है।"
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"बूंद-बूंद से घडा भर सकता है लेकिन नदियां व झरने ही समुन्दर बना सकते हैं।"

Friday, November 13, 2009

शेर

नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
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हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला।
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मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
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हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना।