Saturday, December 17, 2011

... दीदार को बेचैन हो जाएं !

रोज मर रहे हैं लोग, तड़फ - तड़फ के भूख से
फिर भी अपने मुल्क में, जन्मदिन की धूम है !
...
सिर्फ दो मुलाकातों में, न सौंप दो खुद को
मुसाफिर हूँ, इतना न एतबार करो !
...
झूठ की बुनियाद है, और तू अकड़ के है खडा
'रब' ही जाने कब तलक, तू खडा रह पायेगा !
...
हम तो दिलबर को आँखों में बसा के घूमते हैं
न जाने किस घड़ी, दीदार को बेचैन हो जाएं !
...
चलो अच्छा हुआ, जो भीड़ का हिस्सा नहीं थे हम
अकेले में सफ़र का, मजा कुछ और होता है !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

अकेले सफर में, सुकून-ए-मज़ा है,
बड़ी भीड़ के संग ठहरना सजा है।