Tuesday, February 14, 2012

चराग-ए-मुहब्बत ...

'खुदा' जाने है, उनकी गलियों में
चराग-ए-मुहब्बत ...
कितने जलाए हैं हमने !
तब कहीं जाके ... बामुश्किल
कदम उनके, हम तक आए हैं !!

2 comments:

vidya said...

बहुत खूब..

प्रवीण पाण्डेय said...

कम से कम आये तो सही...