Monday, March 5, 2012

कशमकश ...

सच ! जमाने से नहीं
हम, खुद से लड़ रहे थे
आज मालुम हुआ
लड़ते-लड़ते ...
हम हार गए, खुद से !
अब, जब -
होश आया तो देखा
हम वहीं खड़े हैं
जहां से
लड़ना शुरू किया था !
और ज़माना
आगे निकल गया है
उफ़ ! ये कशमकश ... !!

2 comments:

Dr.J.P.Tiwari said...

बधाई सत्यता के धरातल का बोध करत रचना के लिए. होली की मंगलमयी शुभकामनाएं.

प्रवीण पाण्डेय said...

सब ऊर्जा बचा रहे हैं..