Tuesday, March 20, 2012

हाल-ए-वतन ...

गम-औ-खुशी के बीच, चलो एक रस्ता बनाएं हम 'उदय'
कितने भी आएँ गम मगर, खुशियाँ भी उनके सांथ हों !!
...
तुम उधर से हैलो कहो, मैं इधर से हाय कहूँ
कहते-सुनते, खुद-ब-खुद एक शेर हो जाएगा !
...
हाल-ए-वतन, अब कोई हमसे न पूंछे 'उदय'
क्योंकि - किसे उल्लू, किसे हम शाख बोलें !

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच कहा आपने, आगे तो बढ़ना ही होगा।