Tuesday, March 6, 2012

प्यार का रंग ...

जब जब चाहा मैंने, रंग जाना प्यार के रंगों में
न जाने क्यूँ, तूने सिर्फ गुलाल से मन भाया है !
...
सच ! तूने ये किस रंग में रंग दिया है मुझे
तेरी सखियाँ ही मुझसे खफा-खफा सी हैं !!
...
वैसे भी तेरे प्यार का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है मुझ पे
कि, किसी और रंग के चढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती !
...
सच ! वैसे पिछले साल का रंग उतरा नहीं है
न जाने, इस बार फिर से, तेरे क्या इरादे हैं ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

ये रंग तो हर साल कुछ और चढ़ जाते हैं, उतरते कहाँ हैं..