Friday, June 29, 2012

गूंगे-बहरे ...


सच ! ये तो 'सांई' में रम जाने का असर है 
कि - अब हमें अपनी भी धुन नहीं रहती !!
... 
इधर हम लिख रहे हैं, उधर तुम पढ़ रहे हो 
फासले, ..................... यूँ कम हो रहे हैं !
... 
आँगन आँगन देव विराजे, आँगन आँगन भाव-भजन हैं 
फिर जात-धर्म के मसलों पर, क्यूँ हम सब गूंगे-बहरे हैं ? 

गम-औ-खुशी ...


इंतज़ार तो है हमें उसका भी 
जो वादे के समय ही, न निभाने का कह के गया है ? 
... 
वो समझते हैं हमारी मजबूरी 'उदय' 
कि - एक वो ही नहीं है, और भी हैं हमारे चाहने वाले ? 
... 
गम-औ-खुशी के बीच का, कोई रास्ता बता 'उदय' 
जिंदगी भी तार लूँ मैं, मंजिल भी पार लूँ मैं !

Thursday, June 28, 2012

वाह-वाही ...


'उदय' चल उठा ले, दियासलाई की डिब्बी 
दिल्ली में, कूड़ा-करकट का ढेर हुआ है ? 
... 
मयकदा है, ...... या है हवामहल 
जिसे देखो, हवा में बात करता है ? 
... 
आज स्तरीय संपादकों की कमी है 'उदय' 
वर्ना, मजाल है वाह-वाही न मिले ? 
... 
अब नींद की चाहत किस कमबख्त को है 'उदय' 
इन सुलगती-तपती रातों में ? 
... 
बिना पिये, अब किस जालिम को आनी है नींद 
तू आँखों में डूब जाने दे, या देखूँ मैं मयकदा ? 

शहर ...


कदम कदम पे, है यहाँ तन्हाई का आलम 
'उदय' आज ये अपना शहर, इतना खामोश क्यूँ है ?

हुआ क्या है, कोई कुछ कहता नहीं है ... 
हरेक शख्स के चेहरे पे, मईयत-सा मातम क्यूँ है ?? 

Wednesday, June 27, 2012

प्रेम की अस्थियाँ ...


काश ! हदों की भी हद होती 
तो शायद, भ्रष्टाचारियों को फांसी लग गई होती ? 
... 
सच ! बिना सैटिंग के भी कभी कुछ हुआ है 'उदय' 
एक तुम हो, खामों-खाँ लिखने में उलझे हुए हो ? 
... 
सच्चे प्रेम की अस्थियाँ, आज गंगा में बहा दी हैं 'उदय' 
क्या करते, ....... नया ऑफर आया है मुहब्बत का ?? 
... 
किसी लुच्चे को, लुच्चा क्यूँ कह देते हो 'उदय' 
आखिर, .............. उसकी भी तो आबरू है ? 
...
'उदय' क्या मिलेगा इन्हें, इस ऊँचाई को छू कर 
अपनी ही नजर में, ................ गिर गिर कर ? 

Tuesday, June 26, 2012

सत्ता के लोभी ...


रहम नहीं है 
शरम नहीं है 
ये सत्ता के लोभी हैं !
मान बेच दें 
शान बेच दें 
बचा-कुचा ईमान बेच दें !!
देश है क्या -
इनकी नज़रों में ... 
ये तो -
घर-औ-द्वार बेच दें ? 

लोकतंत्र ...


चहूँ ओर ... अस्त-व्यस्त 
जनता त्रस्त 
मंत्री-अफसर मस्त 
सत्ताधारी मदमस्त 
और लोकतंत्र हुआ है पस्त 
कब होगा 'उदय' - 
इन भ्रष्टों का सूरज अस्त ? 

Monday, June 25, 2012

खंजर ...


इल्म नहीं था, यकीं नहीं था, कि - वादे उसके टूटेंगे 
वर्ना जाँच-परख हम लेते, वे कितने कच्चे-पक्के हैं ? 
... 
रहम करो, न बनो तुम कसाई यारो 
ये मुल्क है, ..... कोई बकरा नहीं है ? 
... 
खंजर धंसा है पीठ में यारों के हाँथ का 
अब किसको कहें कि यार तुम इसको निकाल दो ?

Sunday, June 24, 2012

मुन्नी ...


वो तो हम तन-औ-मन से जहरीले हो गए हैं 'उदय' 
वर्ना, जहर के सौदागर, कभी के जीत गए होते ? 
... 
खामों-खां तुम नाम में उलझे हुए हो 
मुन्नी ... कब की सियानी हो गई है ? 
... 
उफ़ ! क्या मिला मंजिलें तान के हमको 
जब नींद भी चैन की आती नहीं उनमें ? 
... 
अब इन खंडहरों में, लोग क्या ढूंढ रहे हैं 'उदय' 
यादों-औ-जख्मों के सिबाय यहाँ रक्खा क्या है ? 

Saturday, June 23, 2012

चिंगारी ...


सच ! कब तलक हम भागेंगे, मुहब्बत से 'उदय' 
किसी न किसी दिन तो पकड़ में आ ही जाएंगे ? 
... 
एक हम ही नादां थे 'उदय', जो सीरत के दीवाने थे 
वर्ना, शहर में कौन है .... जो सूरत पसंद नहीं है ? 
... 
जी चाहे उतनी देते रहो दुहाई तुम 'उदय', प्यार की 
पर, हमने जिसे चाह के देखा, वही बे-वफ़ा निकला ! 
... 
महज एक चिंगारी से दहकने लगते हैं शहर के शहर 
अपने जज्बों को आग दो यारो !!
... 
मोहब्बत अभी भी ज़िंदा है 'उदय' 
वर्ना, जुबां से नाम अपना मिट गया होता !

Friday, June 22, 2012

चाहतों के मेले ...


जी चाहता है खो जाएं भीड़ में 
जिसे चाह होगी, वो तलाश लेगा हमें ? 
... 
सच ! पता बदल भी लें, पर जज्बात कहाँ बदलेंगे 
आज नहीं तो कल, हम फिर किसी से भिड़ लेंगे ? 
... 
और कितना डूब के देखें हम तेरे जज्बात यारा 
पानी का रंग भी, क्या कभी बदलता है सनम ? 
... 
'खुदा' जाने है या तुम, हमारी चाहतों के मेले 
चंहू ओर, ........ सिर्फ तुम्हारी ही आवाजें हैं !
... 
लो, बरसात भी पूरी तरह अब थम गई है 
पर, जिस्म की भभक से धुंआ उठ रहा है ! 

मोल-भाव ...


ये मासूमियत है, या तेरी दरियादिली है 
नासमझ बन के बहुत कुछ समझते हो ? 
... 
न जाने कितने, दुआ, प्रार्थना, यज्ञ में लीन थे 'उदय' 
और इधर तेज बारिशों ने मिट्टी के घरौंदे बहा दिए ! 
... 
तुम ज़मीर खरीदने आए हो या परचून मियाँ 
जो, ... यहाँ भी मोल-भाव की बातें किये हो ? 
... 
ऐ जिस्म के पुजारी, तू ज़रा कायदे में रह 
कमसिन तो हूँ लेकिन, मूरत नहीं हूँ मैं ?
... 
अगर मकसद तेरा, इल्जाम ही लगाना है तो लगा 
मगर, मेरे आंसू मगरमच्छी हैं ये इल्जाम न लगा ! 

Thursday, June 21, 2012

इत्तफाक ...


एक तरफ 
भूख से मर रहे हैं गरीब !
और दूसरी तरफ 
गोदामों में 
सड़ रहे हैं अनाज !!
बोलिए हुजूर ... 
ये कैसी, कौनसी -
नीति है तुम्हारी ?
या 
ये भी एक ... इत्तफाक है 
तुम्हारी नजर में ?? 

तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ??


प्रीत लिखूँ, या मीत लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ?

भूख लिखूँ, या प्यास लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ?

धरम लिखूँ, या करम लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ?

धूप लिखूँ, या छाँव लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ?

मिलन लिखूँ, या विरह लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ?

प्रीत लिखूँ, या मीत लिखूँ 
तुम बोलो कैसा गीत लिखूँ ??

Wednesday, June 20, 2012

सरसराहट ...


न जाने कौन है जिसने जगाया, हमें रात के इस पहर 
क्या ख्वाहिशें हैं बोल दो, औ ले भी लो तुम इस पहर ! 
... 
कदम कदम पे डफली है, और कदम कदम पे राग है 
बजाने वाले बहरे हैं, और ताली पीटू ... हैं मूकबधिर ? 
... 
कदम कदम पे, इस काली-घनेरी रात में भी सरसराहट है 
न जाने कौन है, जो संग मेरे चल रहा है ? 

अदाएँ ...


खुदा जानता है या फिर तुम, गहराई प्यार की 
वर्ना, सुनते तो यही हैं कि बहुत डूबते डूबते बचे हैं ?
... 
अब तू खामों-खां इल्जाम मत लगा 
आँखों से, छेड़-छाड़ होती है कभी ? 
... 
क़त्ल हो जाए और आह भी न निकले 
कुछ ऐंसी हैं 'उदय', ... अदाएँ उसकी !

Tuesday, June 19, 2012

ढोंग ...


खता न कुसूर, और फांसी की सजा 
ये मेरा मुल्क है, या कसाई का घर ? 
... 
नाज कर, गुमान कर, पर घमंड न कर 
ये तेरी खुबसूरती को शोभा नहीं देता ? 
... 
शाखें कतरने का, तुम ढोंग न करो 
गर नफ़रत मिटाना चाह है तो जड़ें काट दो !

Monday, June 18, 2012

टेक-ओवर ...


अब मेरे जख्मों को तू इतना भी मत कुरेद 
कि - दर्द मिट कर कहर बन जाए तुझपे !!
...  
उफ़ ! जिधर देखो उधर झुनझुनों का राग है 
चाटुकारिता के दौर में, हुई बांसुरी बेराग है ? 
... 
आओ 'उदय', किसी गैंग को टेक-ओवर कर लें 
वैसे भी, नई बनाने की, फुर्सत यहाँ है किसको ? 

Sunday, June 17, 2012

होश-बेहोश ...


शाम होती नहीं कि - टुन्न हो जाता हूँ मैं 
तेरी यादों के मद में होश खो जाता हूँ मैं !

कभी पीता नहीं हूँ शराब के दो घूँट भी मैं 
गर न देखूं तुझे तो बेहोश हो जाता हूँ मैं !!

बाबू जी ...


शहर में ... 
धूप में ...
अब मेरा बसेरा है !
न छाँव है ... 
न गाँव है ... 
जब से -
चले गए हैं बाबू जी !!

Saturday, June 16, 2012

जाति, धर्म, मजहब ...

बहरापन ... 
जब तक जी चाहे ... 
तब तक ... 
चीखते रहो ... चिल्लाते रहो ... 
सरकारें ... सुनें, या न सुनें ?
पर 
कोई न कोई तो होगा, जो -
सुनेगा ... जरुर सुनेगा 
क्योंकि - 
हर एक शख्स ... शहर का 
बहरा नहीं होगा ??
-----
डगर ...
चलते रहो - बढ़ते रहो 
न देखो 
तुम मुड़कर पीछे 
कभी भी ... राह में !
जिन्होंने -
सांथ छोड़ा है 
उनकी 
मंजिल नहीं है ये डगर !!
-----
जाति, धर्म, मजहब ... 
चले आओ, मुझे तुम क़त्ल कर दो 
और तुम्हें मैं क़त्ल कर दूँ !
खून से लाल कर दें इस जमीं को 
अब यहाँ -
कौन, फूलों को उगाना चाहता है ? 
जिसे देखो वही - 
जाति, धर्म, मजहब की बात करता है 
अमन की ... 
शान्ति की ... 
अब यहाँ किसको जरुरत है ?? 

Friday, June 15, 2012

चार काँधे ...


जी तो चाहता है हमारा भी, प्यार में डूब जाने को 
मगर अफसोस, कहीं कोई समुन्दर नहीं दिखता ? 
... 
अभी तक तो मुडेर पे, कोई बैठा ही नहीं है 
मगर फिर भी, कहीं पे चाँव-चाँव, तो कहीं पे काँव-काँव है ?
... 
जिन्ने झूठी मुहब्बत पे, सच्ची दोस्ती कुर्बान की थी 
उफ़ ! आज उनके जनाजे को, चार काँधे नहीं मिले !!
... 
हम गरीब हैं पगड़ी, कोई हंसी के चुटकुले नहीं 
जो तेरे बत्तीसी आंकड़ों पे तालियाँ गूँज जाएं ? 
... 
कदम कदम पे भरम हो जाता है हमको 
किसी न किसी से, तेरी चाल या अदाएं मिल ही जाती हैं !

Thursday, June 14, 2012

ग़ालिब ...


हसरतें दिल की, तो कब की टूट के बिखर गईं हैं 'उदय' 
अब ... ये कौन है, जो खामों-खां दस्तक दे रहा है वहां ? 
... 
देखना, किसी भी पल, वे सब-के-सब चुप हो जाएंगे 
बस, कुछ के ईमान खरीदे, तो कुछ के बेचे जाएंगे ?
... 
सराफत है, या बहरुपियापन है 
सुबह देखो - शाम देखो, बड़े अदब से पेश आता है ? 
... 
सच ! जमीनें छीन ली हैं, शहर के कुछ दरिंदों ने 
नहीं चलता है बस, जोर उनका आसमानों पर !!
... 
सच ! सुनते हैं 'उदय', उन्हें 'ग़ालिब' की तलाश है 
आज, गर वो होते तो वो भी किसी कोने में होते ? 

Wednesday, June 13, 2012

फ़रियाद ...


अभयदान ...
---------
हे भगवन ... प्रभु ... 
दयालु ... 
कृपालु ... 
पालनहारी ... 
तुम कहाँ हो ? 
क्या कहीं छिप गए हो ? 
या फिर - 
बैठकर चुपचाप देख रहे हो ? 
भ्रष्टाचारियों ... 
अत्याचारियों ... 
और दलालों को ... 
अभयदान देकर ???
...
फ़रियाद ...
--------
चंहू ओर ... शहर में ... 
हैं हुजूम लुटेरों के !
अब क्या करें 
हम -
लुट तो गए हैं 'उदय' !!
कहो - 
अब यहां ... 
हम -
किस से फ़रियाद करें ? 

Tuesday, June 12, 2012

सरकारी अनाज ...


न जाने कौन था जिसका जनाज़ा सामने था 
मैं खुद को रोक नहीं पाया, कांधा लगाने से !
... 
यकीन कर, इत्मिनान रख, ठहर जा 
नहीं मुमकिन जमाने में, मुझसे बेहतर कोई मिलना ? 
... 
चलो माना, कि - सरकारी अनाज चूहे खा रहे हैं 'उदय' 
फिर गरीबों के पेट के चूहे,  भूखे क्यूँ हैं ? 

Monday, June 11, 2012

सुबह-औ-शाम ...


चूल्हे पे गंजी देख के बच्चों में आस थी 
पानी उबल रहा था, और माँ उदास थी !
... 
सच ! इस कडुवे की लत सुधार लो 'उदय' 
कहीं ऐंसा न हो, मीठा जहर लगने लगे ? 
... 
बहुत भटका हूँ, भटकते रहा हूँ, सुबह-औ-शाम 'सांई' 
पर अब ..... तेरी चौखट से जाने को जी नहीं करता !
... 
लो, सब देखते रहे, और उनने झंडा गाड़ दिया 
कौन कहता है हिमालय पे साईकल नहीं जाती ? 
... 
जिस दिन हम खुद को किसी का कर देंगे 'उदय' 
सच ! ये तन्हाई भी मिट जायेगी !!

Sunday, June 10, 2012

हुआ-हुआ ...


इस दौड़ को दौड़कर हम क्या कर लेंगे 'उदय' 
यहाँ पर कौन है जो फिक्स नहीं है ?
... 
सच ! अब हुनर की कोई कीमत नहीं रही 
लड़इयों की हुआ-हुआ तमगों की शान है !
... 
गर मुझे कोई और जुबां आती, तो मैं उसमें बात कर लेता 
मगर, दुःख इस बात का है कि - उन्हें हिन्दी नहीं आती ?

Saturday, June 9, 2012

घोटाला ...


सच ! कोई खरीद रहा था, तो कोई बेच रहा था 
आज ईमान के बाजार में बहुत भीड़ थी 'उदय' !
... 
कैंसे बताऊँ मैं 'उदय', कि - मैं बहुत प्यासा हूँ 
क्या सूखे गले से, आवाज निकली है कभी ? 
... 
मंदिर हो, या मस्जिद हो, या फिर हो वो मयखाना 
कोई तुम एक जगह बता दो, जहां नहीं है घोटाला ?

Friday, June 8, 2012

अंदेशा ...


अब उनसे दौड़, अपनी कब रही थी 'उदय' 
जिन्होंने जीत के तमगों में गड्ड-मड्ड कर लिया था ? 
... 
उफ़ ! हुआ वही, जिसका अंदेशा था 'उदय' 
लोगों ने, खुद को 'खुदा' कहना शुरू कर दिया है ?
... 
बुझते-बुझते फिर भभक उठता हूँ 
बस, तेरी फूंक में जोर इत्ता ही है ?

Thursday, June 7, 2012

इत्तफाकन ...


उलझन मेरी अब दूर कर दो तुम सनम 
मैं आशिक हूँ या नौकर हूँ ज़रा खुल के कहो ? 
... 
मर्जी है तुम्हारी, शो-केस में रख दो कहीं 
अब आदमी नहीं, मैं खिलौना हो गया हूँ !
... 
ढूंढा ... ढूंढा ... ढूंढा जग में, कहीं कबीर नजर नहीं आए 
ज्यों ढूंढा मन की अंखियों में, त्यों कबीर-कबीर ही भाए !
... 
यकीनन, मुझे यकीन है तुम पर 
गर चाहो, तो आजमा लो ? 
... 
टकराना तो इत्तफाकन ही हुआ था 'उदय' 
जानता कौन था कि वो हमसफ़र हो जाएंगे !

Wednesday, June 6, 2012

गड़बड़झाला ...


साईकल है रेस में 
पर 
कोई नहीं है संग !
जीत-हार 
का भय नहीं अब 
हैं -
चहूँ ओर भुजंग !!
गड़बड़झाला देख के 
जनता हुई है दंग !!!

Tuesday, June 5, 2012

तसल्ली ...


हे 'सांई', मेरे लिए तेरी चौखट ही मक्का-मदीना है 
ज्यों सजदे को नजर झुकी, त्यों 'खुदा' नजर आए !
... 
'रब' जानता है या खुद वो जानते हैं, वजह जुदाई की 
वर्ना ..... चाहतें तो, दोनों सिरों पर आसमान पे थीं ! 
... 
सुनो, तुम्हें ऐंसा सुलूक शोभा नहीं देता 
चाहते भी रहो, और खामोश भी रहो ?
... 
जिधर देखो उधर, चेहरे-चेहरे पे हिन्दू-मुसलमान लिखा है 
हे 'सांई' कोई तो तरकीब सुझाओ जिससे ये भेद मिट जाए ?
... 
हम जानते हैं, तुम बे-वजह खुद को भी तसल्ली नहीं देते 
जरुर कोई ख़ास वजह होगी, हमें देखकर मुस्कुराने की ? 

Monday, June 4, 2012

इंकलाबी ...


हाँ ... 
हूँ ... 
मैं इंकलाबी हूँ !
करूँ तो क्या करूँ ?
जिधर देखो उधर 
लूट, शोषण, ह्त्या, बलात्कार 
की ... चीखें हैं !!
हाँ ... 
हूँ ... 
मैं इंकलाबी हूँ !!!

Sunday, June 3, 2012

खुदगर्जी ...


ऐ दोस्त ... तेरी खुदगर्जी 
जिसे तू ... 
अपना हथियार समझता है 
ये हथियार 
बेहद प्राणघातक है !
किन्तु ... 
ये किसी और के लिए नहीं 
वरन 
खुद तेरे लिए ... प्राणघातक है !!
देखना ... संभल के रहना 
कहीं ... किसी दिन 
ये ... तेरी ही जान न ले ले ? 

Saturday, June 2, 2012

'राईट टू रिकॉल' ?


मंत्री ... सांसद ... विधायक ... 
भृष्टाचार के आरोप लगे 
जांच हुई 
अपराध कायम हुए 
सबूत मिले 
गिरफ्तार हुए 
जेल गए 
जेल में रहे 
जमानत हुई 
फिर से ... सदन में ... सीना तान के 
न तो पार्टी ने इस्तीफा लिया !
न ही बर्खास्त किया !!
और न ही -
सदन, इन पर कार्यवाही को तैयार है !!!
क्या ऐंसे लोगों के लिए 
'राईट टू रिकॉल' फिट नहीं है ???

Friday, June 1, 2012

दाल-रोटी ...


मायावी संसार ... 
--------------
ये तेरा, कैसा मायावी संसार है 'उदय' 
एक ओर 
लोगों को एयरकंडीशन में भी नींद नहीं आती 
तो दूसरी ओर  
गर्मी हमें सोने नहीं देती ? 
... 
अनाथ ...
------
आओ ... 
हम ... एक दुकान खोलें 
तुम 
गुब्बारे, फुलो-फुलो कर बेचो !
और मैं 
बरफ के रंगीन -
गोले बना-बना कर बेचता हूँ !!
इस तरह 
हमारे इर्द-गिर्द 
रोज ... बच्चे-ही-बच्चे रहेंगे 
शायद 
ऐंसा करने से, अपनी ... 
अनाथ -
होने की पीड़ा भी दूर हो जाए ? 
... 
संन्यास ... 
--------
उन्होंने शर्त रख दी है 'उदय' 
कि - 
गर उन पर 
आरोप भृष्टाचार के, सिद्ध हो गए 
तो वो 
राजनीति से संन्यास ले लेंगे ! 
पर 
हम सहमती से डर रहे हैं !!
कि - 
कहीं वे 
कल इसी शर्त की आड़ लेकर 
जेल जाने से न बच जाएं ? 
... 
दाल-रोटी ...
---------
साहब ... माई-बाप ... दया करो 
हम - 
गरीब हैं ...
मजदूर हैं ... 
किसान हैं ... 
गर इसी तरह 
रोज, हर रोज, मंहगाई बढ़ती रही 
तो 
हमें और हमारे बच्चों को 
दाल-रोटी के भी लाले न पड़ जाएं ? 

लड़खडाहट ...


मंहगाई, तोड़-फोड़, आगजनी, रेल रोको, भारत बंद 
अब क्या सुनाएँ हम 'उदय', इन रिवाजों के किस्से !!
... 
मुफलिसी का जो दौर हमने देखा है 'सांई' 
बस, दुआ है किसी और को मत दिखाना !
... 
अभी तक बिकी नहीं है, ये कलम 
बोल ... बता ... क्या लिखना है ? 
... 
जिस दिन, ये कलम किसी की गुलाम हो जायेगी 'उदय' 
उस दिन देखेंगे, कम से कम आज तो आग उगलने दो ? 
... 
'सांई' को मंजूर नहीं था कि मैं कातिल कहलाऊँ 
वर्ना, ऐ दोस्त ........ तेरा क़त्ल हो गया होता !!
... 
जिस घड़ी उन्ने, खुद को लुटाने का हुनर सीखा था 'उदय' 
काश ! तभी हमने भी, लूटने का हुनर सीख लिया होता !!
... 
न उन्ने पैगाम भेजा, और न हमने अनुरोध 
फिर क्या था 'उदय', कशमकश चलती रही !
... 
यार ......... ये जरुर है कि - कल तुम पी कर लड़खडा रहे थे 
पर, शराब की आड़ में तुम किस लड़खडाहट को छिपा रहे थे ?