Tuesday, July 3, 2012

लूटमार ...


काश ! उस्तादी शक्ल में, हमें 'सांई' मिल गए होते 
तो दो-चार दांव में ही, हम सिकंदर हो गए होते !!!
... 
ये जुनून-ए-इश्क है यारा 
कभी पानी सा लगता है, कभी शोला सा लगता है !
... 
ज्यों ही सत्ता ने कहा, ये कतई लूटमार नहीं 
लोग यूँ उठ के चले, जैसे कुछ देखा ही नहीं !

No comments: