Monday, May 27, 2013

जैसे-तैसे ...


सच ! बेवजह के ख्यालों से अब मैं बाहर हूँ 'उदय'
उनकी दुनिया में तो हूँ, पर अब उनसा नहीं हूँ ??
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आज हम साहित्यिक ट्रैक से तनिक दूर हो गए हैं 'उदय'
वर्ना, कोई अनजान नहीं है हमारे शाब्दिक करतबों से ?
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सच ! रोज तय करते हैं मैकदा, रोज तोड़ देते हैं
उनकी यादें भी, अब हमसे संभाली नहीं जातीं ?
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कुछ बदले-बदले से नजर आ रहे हैं हुजूर
मिलना न चाहें भी तो कैसे रोकें खुद को ?
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हम तो, जैसे-तैसे भी काट लेंगे बिन तेरे ये जिन्दगी 
पर तू,.......................................ज़रा सोचले ? 
... 

2 comments:

Tamasha-E-Zindagi said...

बहुत खूब लिखा | आभार

प्रतिभा सक्सेना said...

शब्द बोलते हैं!