Thursday, May 30, 2013

आतुर ...

गर तुम चाहो तो, मेरे रकीबों की बातों पे मुहर लगा दो
पर मेरे दोस्तों से पूंछ-पूंछ के खुद को शर्मिन्दा न करो ?
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कभी आगे - कभी पीछे, हमारा नाम होता है
अब तुम मान भी लो, शहंशाह हैं हम शेरों के ?
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लो 'उदय', चोरी की लत से वो, आज फिर बाज नहीं आये
सच ! किनारे समंदर के, नाम अपना लिख के चले आये ?
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न बोतल, न साकी, न मैकदा था 
अब किस किस को दूँ जवाब, हूँ मैं किस नशे में आज ?
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सच ! वो कुछ इस कदर बिकने को आतुर हैं 'उदय' 
गर दाम भी पूछा किसी ने, तो वो उधर हो जायेंगे ? 
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