Tuesday, June 18, 2013

ऐब ...


आज,.....................हमें भीग जाने दो  
एक अर्से बाद, वो बरसे हैं बारिश बन के ?
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तुम जितना तोड़ोगे, हम उतना संवर जायेंगे
बात दिल की है, गर हारे भी तो जीत जायेंगे ?
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काश ! दिल उनका 'उदय', इतना तो वातानुकूलित होता
जो, हमारे दिल की, तडफ़न को सुकून दे पाता ??????
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काश, इतराने के सिबा, कुछ और भी हुनर होता उनमें
सच ! कसम 'उदय' की, जां निछावर कर देते हम भी ?
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सच ! ये कौन नहीं जानता है कितने ऐब हैं हममें
फिर भी, न जाने, उन्हें क्या नजर आया है हममें ?
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2 comments:

के. सी. मईड़ा said...

बहुत खुबसुरत पंक्तियां उदय जी ......खासकर.........
तुम जितना तोड़ोगे, हम उतना संवर
जायेंगे
बात दिल की है, गर हारे भी तो जीत
जायेंगे ?

Madan Mohan Saxena said...

सार्थक प्रस्तुति
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