Sunday, July 28, 2013

पैंतरेबाजी ...

यकीनन, तुम्हारी दोस्ती पे यकीन है हमें
पर, दोस्ती के भी तो कुछ उसूल होते हैं ?

सच ! घुप्प अंधेरा…छा गया है बारिशों से
सिर्फ, कड़कडाती बिजलियों की रौशनी है ?

बा-अदब… क़ुबूल है,… सलाम हुजूर का
मौसम-औ-बरसात,…दोनों का शुक्रिया ?

वैसे उन्ने, सौ टका टंच बात कही है
विरोध तो,…. आम बात है 'उदय' ?

तंग आ गया हूँ 'उदय', मैं उनकी पैंतरेबाजी से
राजनीति, …… उफ़ ! वो भी गरीबों के सांथ ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

ग़रीबों की आस और आह, दोनों ही लम्बी होती है।