Friday, May 30, 2014

बेसुध ...

कहीं थक न जाऊं खुद अपनी तकदीर लिखते लिखते
'उदय' तुम, … यूँ ही, … मेरा हौसला बनाये रखना ?
उनके झूठ पे, सौ लोगों ने सच होने की मुहर लगा दी है 'उदय'
और सच, सच हो के भी,… उसे,… बेसुध निहार रहा है आज ?

जरुरत तो नहीं थी बेफिजूल तमाशे की
खैर, कोई बात नहीं, आदत है उनकी ?
… 
उफ़ ! चोट और जख्म कुछ ऐसे हैं हमारे
किये भी हमने हैं, औ सहे भी हैं हमने ?

न इधर … न उधर …
आओ खेलें इधर-उधर ?

Tuesday, May 27, 2014

चरित्र ...

जीत आसां थी पर चुनौतियां कठिन हैं
अब देखते हैं 'उदय', कितने टंच हैं वो ?
… 
न हैरां हैं, न परेशां हैं
बस, वक्त गुजर रहा है 'उदय' ?
चरित्र उनका भी लाजवाब है 'उदय'
चित्त उनकी, पट्ट उनकी, औ है अंटा भी उनके बाप का ?
खुली जब पोल उनकी तो सकपका गए
जो खुद को 'खुदा' कह रहे थे कल तक ?

कहीं थक न जाऊं खुद अपनी तकदीर लिखते लिखते
'उदय' तुम, … यूँ ही, … मेरा हौसला बनाये रखना ?

Sunday, May 25, 2014

सियासत ...

न तो तुम 'खुदा' हो, और न ही हैं हम
फिजूल के मुगालते अच्छे नहीं यारा ?
ये तू, फिर किधर को ले चल पड़ा है मुझे
कुछ घड़ी… चैन की सांस तो ले लेने दे ?
सच ! अब जब जिस्म की कीमत है करोड़ों में 'उदय'
फिर जिन्ने ईमान बेचा है वो तो धन्ना सेठ होंगे ??

तू,………… पागल है, मूर्ख है, धूर्त है
कितना समझाऊँ तुझे, ये राजनीति है ?

ये कैसी सियासत है 'उदय' वतन में मेरे
चित्त भी उनकी है, और पट्ट भी उनकी ?
… 

Monday, May 19, 2014

छले गए हैं लोग ...

ईमानदारी से जीतते तो कोई बात होती
छल औ बेईमानी तो हम भी जानते हैं ?
सन्नाटा और शोरगुल दोनों एक साथ हैं 'उदय'
ऐसे हालात जियादा देर तक अच्छे नहीं होते ?
वो कहते हैं कि अब तुम, हमें ही 'खुदा' समझ लो
क्या रख्खा है, मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारों में ?
हम बुत हैं, हमें किसी का भय नहीं है
कोई हमसे झूठ की उम्मीद न रक्खे ?
ये जीत, ये हार, हजम हो तो हो कैसे 'उदय'
यकीं नहीं होता,… कि… छले गए हैं लोग ?

Saturday, May 17, 2014

गोलमाल ...

भले चाहे, छल औ बल जीत के आधार हों
लेकिन, फिर भी, जीत तो जीत है 'उदय' ?

कहीं ख़ुशी, तो है कहीं मातम सा आलम
ये कैसी राजनीति है, ये कैसा लोकतंत्र है ?

सुनते हैं, सब्र का फल कभी खट्टा नहीं होता
पर ये बात बेसब्रों को कौन समझाये 'उदय' ?

कहीं सन्नाटा, तो कहीं धमाल है
'उदय बाबा' ये कैसा गोलमाल है ?

शब्दों की, छुट-पुट कारीगरी तो हमसे भी हो जाती है 'उदय'
इस नाते मजदूर कहलाने का हक, क्या हमारा नहीं बनता ?

Thursday, May 15, 2014

एग्जिट बनाम एग्जेक्ट ...

कल …
ढंकी ढंकी सी शाम थी,
और आज …
है खुली खुली सुबह … ?

उफ़ ! वो कैसे ज्योतिषी हैं, कैसे पंडित हैं 'उदय'
जिन्हें, अच्छे-औ-बुरे दिनों की समझ नहीं है ?
'खुदा' जाने वो मिट्टी के बने हैं
हार के भी हार मानते नहीं हैं ?
गर, 'एग्जिट पोल', 'एग्जेक्ट' न निकले 'उदय' तो
तो, तो क्या ! डूब मरेंगे बहुत चुल्लु भर पानी में ?
झूठ औ लफ्फाजियों की बुनियाद पे सरकारें
उफ़ ! … कब तक 'उदय' … कब तक ????

Tuesday, May 13, 2014

सच्ची-झूठी ...

इस दफे, उन्ने, मुस्कुराया है जरा हट के
कहीं ये कयामत की आहट तो नहीं ???

सरकार तो बननी ही है 'उदय'
अब,… सच्ची बने या झूठी ?

कौन हारेगा - कौन जीतेगा, अब ये तो वक्त ही बतायेगा 'उदय'
पर, बता दिया है उसने कि भले 'आम' सही पर 'आदमी' तो है ?
हमें बागी कहो, या इंकलाबी, तुम्हारी मर्जी
पर …… हमारे इरादे बदलने वाले नहीं हैं ?
अभी तक उन्ने गंगा को प्रणाम नहीं किया है 'उदय'
जो कल तक, …… पूजा-औ-आरती को बेताब थे ?

Sunday, May 11, 2014

अंतिम विकल्प ...

आखिरी दौर है, आखिरी वार है,
करो प्रहार …

उठो, जागो … पहलवानो

वोट ही … अंतिम विकल्प है 
चोट ही …
अंतिम विकल्प है  
 
अंध में, अंधकार में … 
आज पूरा … हमारा तंत्र है ???

Friday, May 9, 2014

नौटंकी ...

सवाल नहीं है अब कच्चे-पक्के का
जब खुद है दिल उनका बच्चे का ?

अच्छे दिन, आने वाले हैं, या… जाने वाले हैं
बड़े कन्फ्यूज हैं हम, कहें तो क्या कहें 'उदय' ?
… 
कुरेद कुरेद के उन्ने जख्म हरे कर दिए 
और अब कहते हैं कि हमें माफी दे दो ? 
… 
बेरहमों पर रहम
क्यों, किसलिये ?
लो 'उदय', नटों को भी ………… मात दे रहे हैं वो
फर्जी प्रचार औ दुष्प्रचार के बाद, अब फर्जी नौटंकी ?

Monday, May 5, 2014

आस ...

यकीं कर, यकीं रख  
रंज-औ-गम के बादल छट जायेंगे 
इक दिन … तुझे भी … 
खुद ब खुद 'खुदा' मिल जायेंगे ??
… 
सच ! लम्हें लम्हें में,… उन्ने,… झूठ के दांव चले हैं
ब्लाइंड गेम है, हार भी सकते हैं…जीत भी सकते हैं ?
… 
सिर्फ प्रचारों और दुष्प्रचारों से सरकारें बनती होतीं 'उदय' 
तो शायद, अब तक, कइयों की सरकारें बन गईं होतीं ??
…  
जबकि …
दिल में, इक आस लगाये बैठे हैं
फिर भी …
न जाने क्यूँ, दूर वो हमसे बैठे हैं ?

Saturday, May 3, 2014

झल्लाहट ...

वे दांतों को बार-बार मीस रहे हैं 
और 
आँखों को …
चकरघन्नी की तरह इधर-उधर घुमा रहे हैं, 

उनकी मुट्ठियाँ में भी बेचैनी तिलमिला रही है 
और तो और 
उनका दिमाग भी झल्लाया हुआ है,

वे आग बबुला हैं
उनसे दूर रहो, बहुत दूर ...

गर वो चुनाव हार गए … तो …
जो … उनके सामने होगा, पास में होगा 
उसे वे …
कच्चा भी चबा सकते हैं ???

Friday, May 2, 2014

हल्ला-गुल्ला ...

कोई आये - कोई जाये, देश वहीं धरा रह जाये 
जिसको देखो शोर मचाये 
हल्ला-गुल्ला रोज कराये 
पर 
भ्रष्टाचार वहीं रह जाये ?

चाहे जिसके हाथों में -
तुम सौंप दो चाबी सत्ता की 
पर … !!
कोई आये - कोई जाये, देश वहीं धरा रह जाये ?

Thursday, May 1, 2014

दीवानगी ...

उफ़ ! लो 'उदय', अब 'फ़ायदा' भी,.... 'आम' और 'ख़ास' हो गया है 
उनका कहना है कि, उन्ने, उनका, कोई खास फ़ायदा नहीं उठाया ?
… 
फर्जी प्रचार औ फर्जी दुष्प्रचार 
सिर्फ, दो ही एजेंडे हैं उनके ??
… 
थोपे गये, और थोपे जा रहे, दोनोँ ही घातक हैं 'उदय' 
उफ़ ! लगता है इस देश का कोई माई-बाप नहीं है ??
… 
हम तो कायल हैं तेरी दीवानगी के 
तू कुछ कह तो सही, उसे ही हम गजल समझ लेंगे ? 
… 
सच ! उन्हें भी खबर है, और उन्हें भी खबर है 
कि हम, … सिर्फ और सिर्फ … इंकलाबी हैँ ?