Sunday, July 20, 2014

आलोचनाओं व सरकारों का चोली-दामन सा साथ !


आलोचनाएँ अपने आप में हमारी व्यवस्था की महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं अगर आलोचनाएँ नहीं होंगी तो समाज को अच्छाइयों व बुराइयों तथा सकारात्मकता व नकारात्मकता का बोध कैसे होगा, इसलिए सरकारों को आलोचनाओं से चिंतित नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं है कि जो सरकार अभी सत्ता में आई है सिर्फ उसकी आलोचना हो रही है, आलोचना तो हर सरकार की हुई है, होती रही है, और तो और भविष्य में भी होते रहेगी।

आलोचनाओं का अभिप्राय यह भी नहीं है कि सरकारें काम करना बंद कर दें, या दुबक के कमरे में बैठ जाएँ। जहां तक मेरा मानना है कि प्रत्येक सरकार को आलोचनाओं का सामना करना चाहिए तथा अपने सकारात्मक व रचनात्मक कार्यों से आलोचकों व आलोचनाओं का प्रतिउत्तर देना चाहिए, सरकारों में कम से कम इतना माद्दा तो अवश्य होना चाहिए कि आलोचनाओं का सामना करें, न की उनकी ओर पीठ कर के बैठ जाएँ । 

यह एक स्वाभाविक सत्य है कि काम होगा तो आलोचनाएँ भी होंगी अन्यथा हाथ पे हाथ धर कर बैठे हुए लोगों पर कौन टीका-टिप्पणी करता है ! काम करिये और करते रहिये, प्रत्येक सरकार का यही मंत्र होना चाहिए, यही कर्तव्य होना चाहिए, तथा अपने कर्तव्यों व दायित्वों के निर्वहन में उन्हें निरंतर मग्न रहना चाहिए, लेकिन इस बात का ख्याल रखना भी हर सरकार का कर्तव्य है कि उनके कार्यों व योजनाओं से जनभावनाएँ आहत न हों। 

वर्ना, जनभावनाओं की उपेक्षा करने वाली मजबूत से मजबूत सरकारों को भी जनता धूल चटा देती है, जनता चुनावों के दौरान जब धोबी-पछाड़ रूपी दाँव चलती है तो अच्छे से अच्छे राजनैतिक पहलवान जमीन पर औंधे मुंह गिरे नजर आ जाते हैं। खैर, सरकारों का बनना व बिगड़ना तो एक स्वाभाविक क्रिया है तथा यह क्रिया निरंतर चलते रहेगी, लेकिन महत्वपूर्ण पहलु यह है कि किसी भी सरकार को सरकार गठन के पूर्व ली गई शपथ को नहीं भूलना चाहिए।

आज के दौर में, मंहगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले, ह्त्या, बलात्कार, आतंकी व नक्सली घटनाएँ ऐसे मुद्दे अर्थात विषय हैं जो समय समय पर सरकारों को आलोचनाओं के कटघरे में खड़ा कर देते हैं, ऐसा भी नहीं है कि सरकारों के पास इस तरह की आकस्मिक आलोचनाओं से बचने के कोई उपाय नहीं हैं, उपाय हैं जरूर हैं, यहां मेरा अभिप्राय यह है कि सरकारें इन उपरोक्त संवेदनशील मुद्दों पर अपनी नीतियां व योजनाएं निष्पक्ष व पारदर्शी रखकर स्वमेव आलोचनाओं से बच सकती हैं।

यह सर्वविदित सत्य है कि मंहगाई, भ्रष्टाचार, घोटाले, ह्त्या, बलात्कार, आतंकी व नक्सली घटनाएँ ऐसे ज्वलनशील मुद्दे हैं जो आयेदिन समाज को गर्माते रहते हैं अर्थात उद्देलित व झकझोरते रहते हैं इसलिए इन मुद्दों पर सरकार व सरकारों को सर्वाधिक सजग व पारदर्शी रहकर कार्य करना चाहिए, इन संवेदनशील मुद्दों पर जो भी सरकारें  असंवेदनशीलतापूर्ण रवैय्या रखेंगी उन्हें आलोचनाओं के दौर से गुजरना ही पडेगा, यहाँ यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होगा कि आलोचनाओं व सरकारों का चोली-दामन सा  साथ होता है !

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