Friday, August 1, 2014

पनाह ...

आओ, गुरु-गुरु खेलें, तुम मुझे, औ मैं तुम्हें
गुरु-गुरु… गुरु-गुरु … कहें, बोलें, और सुनें ?
… 
यूँ तो हर मसले का हल है तेरे पास
पर, हम तेरा क्या करें,
तू ही तो असली मसला है आज ??
वो, ... .…….. खड़े हैं शान से देखो, ... ….…..  पर 
शान-औ-शौकत दिखाबी है, कर्ज में डूबी कहानी है ?
"पल-पल … किल-किल बहती नदिया …
बिलकुल वैसे … जैसे मन बहता है … ?"

जब तक, बारिश का, दुआओं का, औ 'रब' का भरोसा है
हमें, तुम्हें, सबको, तूफानों में भी पनाह मिल जाएगी ?
...

No comments: