Monday, September 29, 2014

नई शुरुवात ...

कन्फ्यूजन ही कन्फ्यूजन है 'उदय' 
'काल' को भजें या 'काली' को हम ? 
… 
भजो, जपो, तपो 
माल पुआ गपो ? 
… 
कहाँ, किस ओर बढ़ें … 
'नो इंट्री' में, चालान से डर लगता है 'उदय' ?
… 
सच ! काल को भज लो या काली को 
वर्ना, कभी भी गटक लिए जाओगे ?
… 
पुराने मामले सब रफा-दफा करें 
चलो, … इक नई शुरुवात करें ? 
… 

Wednesday, September 24, 2014

ख्याल ...

'खुदा' जाने, किस राह पर, किस मोड़ पर हैं 
मंजिलों से अब कोई वास्ता नहीं है हमारा ? 
… 
कभी कभी ही सही, मिल लिया करो यारो 
कुछ ख्याल अच्छे-बुरे तो होते हैं सभी के ?
… 
चाहतों के दिये उधर भी जलते हैं इधर भी जलते हैं 
पर, कुछ भी कहने से दोनों डरते हैं 
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ??
… 
आज, रंज करें भी तो हम किस बात का करें 
उन्ने पहले ही कह दिया था हमपे यकीन मत करना ?
… 
अब उसे दुनाली कहो या ट्वेल्व-बोर कहो 
वो जब भी चलेगी तो जान लेके ही रहेगी ? 
… 

Sunday, September 21, 2014

गिल्ली-डंडा ...

इसको देखा, उसको देखा, जिसको देखा… लड़ते देखा 
छोटी-छोटी बातों पे, 
हमनें, 
लोगों को, 
गिल्ली-डंडा बनते देखा ? 
झूमा-झटकी, पटका-पटकी, झपटा-झपटी करते देखा 
लड़ते देखा, 
भिड़ते देखा, 
गिरते देखा, 
उठते देखा, 
छोटी-छोटी बातों पे…… गिल्ली-डंडा बनते देखा ???

Wednesday, September 17, 2014

हुस्न औ जिस्म …

सच ! जब तक मिले नहीं थे उनके औ मेरे मिजाज 
कुछ वो भी अजनबी थे, कुछ हम भी थे अजनबी ?
… 
'उदय' क्या बताएगा ये तुम हम से पूछों यारो 
इश्क में, बड़े बड़े 'शेर' भी 'चूहे' नजर आते हैं ? 
… 
डगमग डगमग हैं हम, औ डगमग डगमग है दिल हमारा 
वो पास से गुजरे हैं ……… या भूचाल आया था 'उदय' ?
… 
उनसे मिलना भी इक बहाना था 
औ  
बिछड़ना भी …… इक बहाना है 
हुस्न औ जिस्म … 
बगैर करतब के कब मिलते हैं 'उदय' ?
… 
वो भी डरते हैं हम भी डरते हैं 
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ? 

Wednesday, September 10, 2014

ख्याल ...

दिल भी तुम्हारा है औ हम भी तुम्हारे हैं
जी चाहे जितना चाहे तोड लो मरोड़ लो ?

या तो, अभी-अभी
या फिर, … वर्ना, … कोई बात नहीं !!!

बड़े इत्मिनान से 'रब' ने तराशा है उसे 
सिर से पाँव तक क़यामत सी लगे है ?

वो भी डरते हैं हम भी डरते हैं
देखो ख्याल हमारे कितने मिलते हैं ?

हुस्न औ जिस्म दोनों की अपनी अपनी कहानी है
कभी सोना, कभी पीतल, तो कभी माटी लगे हैं ?

इसे हम धुँआ कहें, या धुंध कहें हम 'उदय'
वो सामने होके भी दिख नहीं रहे हैं आज ? 

Tuesday, September 2, 2014

मिजाज ...

गर, खुबसूरती का, कोई पैमाना होता तो हम बताते
कि इन आँखों में तुम किस कदर बस गए हो आज ?
कच्ची मिट्टी का घरौंदा है अपना
सच ! आगे जैसी तुम्हारी मर्जी ?

न ठीक से वफ़ा, न बेवफाई
कुछ ऐसे हैं मिजाज उनके ?

सच ! चुकता किया है उन्ने कोई पुराना हिसाब-किताब
वर्ना, मंहगाई के इस दौर में कोई दिल तोड़ता है आज ?
तेरी खुबसूरती पे, एतबार नहीं है हमें
ये आँखों का भ्रम भी तो हो सकता है ?