क्या दिल - क्या आशिकी, क्या शहर - क्या आवारगी
रफ्ता रफ्ता दास्ताँ है, ...... औ रफ्ता रफ्ता जिंदगी ?
…
हम इतने भी आदी नहीं हुये हैं साकी तेरे मैकदे के
कि - …… बगैर तेरे, …… हमारी शाम न गुजरे ?
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"