Thursday, May 25, 2017

गुस्ताख

सिक्का ...
था बड़ा गुस्ताख
हमने माँगा चित्त .. औ वो पट्ट आ गया,

कुछ .. इस तरह ...
उछल-कूद में
जीवन का बंठाधार गर गया,

अब .. हार क्या .. और जीत क्या ....
जो हुआ .. सो हुआ
सब .. गुड़ का गोबर कर गया,

सिक्का ..
था बड़ा गुस्ताख ...
कभी राह बदल गया .. तो कभी चाह बदल गया .. !

( नोट - वैसे तो सिक्का अपने आप में पूर्ण भाव के साथ  होता है ... लेकिन .. यहाँ सिक्का .. भाग्य औ वक्त का भाव भी अपने साथ लिए हुए है ... अर्थात सिक्का के स्थान पर भाग्य / वक्त भी पढ़ा व महसूस किया जा सकता है ... ! )

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