Saturday, September 30, 2017

सच .. मैं .. रावण हूँ ... !

अबे .. चूजो ...
घोंचुओ ...
भोंपुओ ...
पप्पुओ ... चप्पुओ ...

रात-दिन .. दुम हिलाने वाले टट्टुओं ...
अब तुम ...
राम बनने की कोशिश ... न करो ....

क्या तुम मेरे पुतले को जलाकर राम बन जाओगे ???

सुबह-शाम .. तलुए चाँटने वाले स्वयं-भू सूरमाओ
क्या तुम्हें तनिक भी शर्म नहीं है ... ?
क्या तुम्हारे अंदर का खून पानी हो गया है ... ?
क्या तुम्हारा जमीर मर गया है ... ?

जो तुम .. मेरे पुतले के सामने ... सीना ताने खड़े हो
जलाओ ...
चलाओ तीर ...
फूंक दो .. मुझे .... और ...
अकड़ के खड़े रहो .. बिना रीढ़ वालो ..... !!

शायद .. तुमसे ...
भृष्टाचारियों ... मिलावटखोरों .... ठगों .....
ढोंगियों .. पाखंडियों .. के विरुद्ध .. कुछ होगा भी नहीं ...

क्यों ? ... क्योंकि -
तुम्हें ..
मेरा पुतला .. जलाने ... देखने ... तालियाँ बजाने ...
की आदत-सी हो गई है ... !

गर .. दम है ... तो ....
जला के दिखाओ ... उसे .. उन्हें ... जिनमें मैं ....
आज भी ज़िंदा हूँ .. जी रहा हूँ ....
हाँ .. सच ... मैं .. रावण हूँ .... अजर हूँ .. अमर हूँ .... !!!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, सब में तो कुछ न कुछ रावण बसता है।